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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/७५ ही अहिंसादि रूप था; परन्तु आठवें वर्ष में बालक वर्द्धमान के चौथे से पाँचवें गुणस्थान में आने पर अप्रत्याख्यान सम्बन्धी चारों कषायें नष्ट हो गईं और आत्मिक आनन्द की वृद्धि हुई; कषायों को जीतने की वीरता में वीर प्रभु एक डग आगे बढ़े। तत्पश्चात् बाल-तीर्थंकर की वीतरागी वीरता की एक अन्य घटना हुई, जिसका आनन्ददायक वर्णन आप आगे पढ़ेंगे। शान्तदृष्टि से हाथी को वश में करने की घटना __वह दिख रहा है वैशाली राज्य का नंद्यावर्त राजप्रासाद; जिस पर अहिंसा धर्म की ध्वजा फहरा रही है। कैसी अद्भुत है इस राजप्रासाद की शोभा ? क्यों न हो, बाल-तीर्थंकर जिसके अन्तर में वास करते हों, उसकी शोभा का क्या कहना ! उस प्रासाद की शोभा चाहे जैसी हो, तथापि इन्द्रियगम्य एवं नश्वर थी; जबकि उसमें निवास करनेवाले प्रभु के सम्यक्त्वादि गुणों की शोभा अतीन्द्रियगोचर एवं अविनश्वर थी। प्रभु के पुण्य ही उस प्रासाद का रूप धारण करके सेवकरूप में सेवा करने आये थे। उस सात खण्ड ऊँचे राजप्रासाद के प्रांगण में छोटे-से वीरप्रभुखड़े हो तब प्रेक्षकों को वीर प्रभु बड़े और प्रासाद छोटा लगता था। राजप्रासाद के निकट हस्तिशाला में कितने ही श्रेष्ठ हस्ती शोभा देते थे। राजप्रासाद के मार्ग से आनेजाने वाले हजारों प्रजाजनों को वर्द्धमान कुँवर के दर्शनों की उत्कण्ठा रहने से उनकी दृष्टि राजप्रासाद के प्रत्येक झरोखे पर घूम जाती थी और कभी किसी को झरोखे में खड़े हुए वीरप्रभु के दर्शन हो जाते तो उसका हृदय आनन्दसे नाच उठता था....कि वाह ! आज तो बाल-तीर्थंकर के दर्शन हो गये। पाठक ! चलो हम भी राजप्रासाद में चलें और वीर प्रभु के दर्शन करके धन्य बनें। राजकुमार महावीर शान्तिपूर्वक अपने कक्ष में बैठे हैं और विचार कर रहे हैं कि अहा ! चैतन्य की अल्प (चौथे-पाँचवें गुणस्थान की) शान्ति को भी डिगा सके ऐसी शक्ति जगत में किसी की नहीं है; तो फिर चैतन्यतत्त्व की परिपूर्ण परम शान्ति का क्या कहना ! शान्त रस के उस महासागर की शक्ति तो अपार है। जगत के भव्य जीव एकबार भी अपने शान्तरस को देख ले तो अन्तर में परमतृप्ति का
SR No.032258
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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