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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/७३ के श्रीमुख से वीतरागी मोक्षमार्ग की सुन्दर बातें सुनकर उन कुमारों को जो हार्दिक प्रसन्नता हुई, उसका क्या कहना ? ढाई हजार वर्ष पूर्व का यह प्रसंग आज भी हमें उतना ही आनन्द देता है, तो उस प्रसंग को प्रत्यक्ष देखनेवाले जीवों के महान आनन्द का क्या कहना ! कितने ही कुमार उससमय सम्यक्त्व को प्राप्त हए । साथ ही पाठकों को यह जानकर आनन्ददायक हर्ष होगा कि वीरकुँवर की बात मनुष्यों की भाँति हाथी-घोड़े और बन्दर भी प्रेम से सुनते थे और प्रसन्न होते थे। ___ बाल महावीर अपने बालमित्रों के साथ ऐसी चर्चा भी करते थे और बालसुलभ क्रीड़ाएँ भी; परन्तु उससमय वे मात्र क्रीड़ाओं में ही नहीं वर्तते थे, उन बाल महात्मा की चेतना उससमय भी अन्तर में अतीन्द्रिय ज्ञानक्रीड़ा करती थी। कई बार वे चैतन्यवन में जाकर निर्विकल्प ध्यान कर लेते थे। उनके अन्तरंग ज्ञान जीवन का आनन्द कोई अनुपम था। एकबार वीरकुमार अपने मित्रों के साथ चर्चा-विनोद करते थे, इतने में अचानक एक आश्चर्यजनक घटना हुई...क्या हुआ ? वह अगले प्रकरण में पढ़िये -
बालवीर की महा-वीरता ' जीत लिया मिथ्यात्व-विष, सम्यक् -मंत्र प्रभाव।
नाग लगा फुफकारने, प्रभु को समता भाव ।। जहाँ इन्द्रियातीत भाव है, वहाँ नाग क्या करता ?
रूप बदलकर बना देव वह, नमन वीर को करता। पूँ...( करता हुआ एक भयंकर विषैला नाग अचानक ही फुफकारता हुआ वहाँ आ पहुँचा...जिसे देखकर सब राजकुमार इधर-उधर भागने लगे; क्योंकि उन बालकों ने पहले कभी ऐसा भयंकर सर्प नहीं देखा था; परन्तु महावीर न तो भयभीत हुए और न भागे। अहिंसा के अवतार महावीर को मारनेवाला कौन है ? वे तो निर्भयता से सर्प की चेष्टाएँ देखते रहे। जैसे मदारी साँप का खेल कर रहा हो और हम देख रहे हों; तद्नुसार वर्द्धमान कुमार उसे देख रहे थे। __शान्तचित्त से निर्भयतापूर्वक अपनी ओर देखते हुए वीरकुमार को देखकर नागदेव आश्चर्यचकित हो गया कि वाह ! ये वर्द्धमान कुमार आयु में छोटे होने पर भी महान हैं....वीर हैं, उसने उन्हें डराने के लिये अनेक प्रयत्न किये; बहुत