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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/१२० स्वरूप है और उसी में सच्चा सुख है, - यह बात स्पष्ट समझ में आती है।
पाठको ! इस घटना में चन्दना की बेड़ी टूट गई, वह दासत्व से छूट गई; परन्तु वास्तव में अकेली चन्दना ही नहीं, सारे भारतवर्ष से दासत्व के/गुलामी के बन्धन टूट गये....दासत्व प्रथा की जड़ उखड़ गई; नारियों के शील की महान प्रतिष्ठा हुई और भारत की नारियों में अपनी आत्मशक्ति का विश्वास पैदा हुआ। भारत की सन्नारियों ने विश्व में उत्तम स्थान प्राप्त किया। अहा, अपने देश के पास जो श्रेष्ठ, सदाचार एवं अध्यात्म का अमूल्य वैभव है वह क्या दुनिया के किसी
और देश के पास है ? २४ तीर्थंकरों तथा समस्त चक्रवर्तियों को जन्म देनेवाली इस भारत भूमि का गौरव विश्व में महान है....भारत में जन्म लेनेवाले हम सब गौरवपूर्वक कह सकते हैं कि “हम उस देश के वासी हैं, जिस देश में होते तीर्थंकर। हमारा जन्म तीर्थंकरों के देश में हुआ है....तीर्थंकर हमारे देश में जन्मे हैं। तीर्थंकरों का और हमारा देश एक ही है।" धन्य, मेरी प्यारी भारतमाता ! मुनिरूप से विचरते तीर्थंकर के चरणों का साक्षात् स्पर्श करने का महाभाग्य तुझे प्राप्त हुआ है.... वन्दे मातरम्।'
(वीर संवत् २५०५, फाल्गुन कृष्णा त्रयोदशी की रात्रि के १ बजे यह लिखतेलिखते महान ऊर्मियाँ जागृत हो रही हैं-अहाहा! चन्दना बहिन, मेरे पास आओ न ! हम आनन्दपूर्वक स्वानुभव की चर्चा करें....और मैं प्रभु महावीर के मधुर संस्मरण तुम्हारे पास से जी भरकर सुनूँ !) ।
राजगृही में चिन्तातुर बहिन चेलना, वैशाली में बहिन प्रियकारिणी त्रिशला तथा चन्दना के पिताजी राजा चेतक और प्रजाजन सब को चन्दना के मिल जाने की खबर सुनकर तथा उसके हाथ से वीर मुनिराज का पारणा होने के समाचार जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई। ___ अब, इधर चन्दना अपनी बहिन मृगावती के साथ कौशाम्बी के राजमहल में रहती हैं और वैराग्यपूर्ण जीवन बिताती हैं; स्वानुभूति में अधिकाधिक परिणाम लगाती हैं; दिन-रात महावीर के विचारों में तल्लीन रहकर समवसरण के सपने देखती हैं कि कब वर्द्धमान प्रभु को केवलज्ञान हो और कब मैं प्रभु के समवसरण में जाकर आर्यिका बनें। प्रतिदिन प्रभु को केवलज्ञान होने के समाचार की प्रतीक्षा