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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/११८ हम दासी समझते थे वह तो भगवती देवी निकली। उन्होंने वीर प्रभु को पारणा कराके अपनी कौशम्बी नगरी का सम्मान बढ़ाया और उसे विश्व प्रसिद्ध कर दिया। अपनी नगरी में वीर प्रभु का आहार नहीं होने का जो कलंक लग रहा था उसे आज चन्दना ने आहारदान देकर मिटा दिया। बहुतों को तो आश्चर्य हो रहा था कि आहारदान और किसी के हाथ से नहीं, एक दासी के हाथ से हुआ।
(अरे नगरजनो! कलंक तो तुम्हारी नगरी में चन्दना जैसी सती दासीरूप में बिकी उसका था....प्रभु महावीर ने उस दासी के ही हाथ से पारणा करके वह कलंक मिटा दिया।....दासी प्रथा दूर कर दी....मनुष्य, मनुष्य को बेचे वह कलंक धो दिया; तथा यह भी प्रचारित किया कि धर्मसाधना में धनवान होने का कोई महत्त्व नहीं है....सद्गुणों का महत्त्व है।) ___नागरिकों के मन में प्रश्न उठने लगे कि यह चन्दना देवी हैं कौन ? कहाँ की हैं ? दिखने में तो पुण्यात्मा लगती हैं....इसप्रकार सब उनका परिचय प्राप्त करने को आतुर थे....इतने में राज्य की महारानी मृगावती अपनी नगरी में सेठ वृषभदत्त के घर मुनिराज महावीर के पारणे के समाचार सुनकर हर्ष सहित वहाँ आ पहँची....और पूछने लगीं 'किसके हाथ से हआ प्रभु का पारणा ?' ...और वे देखती हैं तो एकदम चौंक पड़ती हैं अरे ! यह कौन है ?.... यह तो मेरी छोटी बहिन चन्दनबाला ! अरे चन्दन....चन्दन तू यहाँ कैसे ?....ऐसा कहकर वे चन्दना से लिपट पड़ीं। अद्भुत था वह दृश्य ! ___दोनों बहिनों का मिलन देखकर, तथा चन्दना महारानी मृगावती की छोटी बहिन है यह जानकर नगरजन तो अचम्भे में पड़ गये और एक-दूसरे की ओर ताकते हुए कहने लगे - अरे, यह दासी नहीं, यह तो महावीर प्रभु की मौसी हैं, सेठ-सेठानी भी चकित रह गये....वे डर रहे थे कि 'अरे रे, इन राजकुमारी से दासीपना कराया....उसके लिये न जाने राजमाता हमें क्या दण्ड देंगी....' हमारा सर्वस्व छीनकर हमें नगर से बाहर निकाल देंगी ! चन्दना उनके भाव समझ गई
और तुरन्त राजमाता के समक्ष सेठ-सेठानी का अपने माता-पिता के रूप में परिचय देते हुए कहा - दीदी ! इन्हीं ने संकट के समय मेरी रक्षा की है, ये माता-पिता से कम नहीं हैं, मुझ पर इनका महान उपकार है....इन्हीं के प्रताप से मुझे यह अवसर प्राप्त हुआ है। सेठ-सेठानी चन्दना का विवेक, क्षमा एवं उदारता देखकर गद्गद् हो गये और कहने लगे