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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/१०६ वीरनाथ मुनि कौशाम्बी नगरी में पधारे। सारे नगर में एक ही चर्चा हो रही है कि वीर मुनिराज प्रतिदिन नगर में आहार हेतु पधारते हैं, किन्तु आहार हो नहीं पाता ! उन्होंने ऐसा कौन-सा अभिग्रह धारण किया होगा ? कौन होगा वह सौभाग्यशाली जिसे मुनिराज के आहारदान का महान लाभ प्राप्त होगा?....अहा, वह मनुष्य बड़ा भाग्यवान होगा, जिसके घर पौने दो सौ दिवस के उपवास पश्चात् प्रभु का पारणा होगा!
चन्दना के जीवन की चमत्कारी घटनाएँ इधर महावीर की मौसी चन्दनबाला कि, जिसने वीरकुमार के निकट सम्यग्दर्शन प्राप्त किया था, वह भी महावीर की भाँति विवाह न करने का निश्चय करके वैराग्य आत्मभावना में जीवन व्यतीत करती थी। एकबार चन्दना कुमारी अपनी सहेलियों के साथ नगर के बाहर उद्यान में क्रीड़ा कर रही थी कि उसके लावण्यमय यौवन से आकर्षित होकर एक विद्याधर ने उसका अपहरण कर लिया; परन्तु बाद में अपनी पत्नी के भय से उसने चन्दना को कौशाम्बी के वन में छोड़ दिया। कहाँ वैशाली और कहाँ कौशाम्बी ! वन के भील सरदार ने उसे पकड़ लिया और एक वेश्या को सौंप दिया। एक के बाद एक होनेवाली इन घटनाओं से चन्दना व्याकुल हो गई कि अरे, यह क्या हो रहा है ?
....ऐसी अद्भुत सुन्दरी को देखकर वेश्या विचारने लगी कि कौशाम्बी के नागरिकों ने ऐसी रूपवती स्त्री कभी देखी नहीं है। इसे रूप के बाजार में बेचकर मैं अच्छा धन कमाऊँगी। - ऐसा सोचकर वह सती चन्दनबाला को वेश्याओं के बाजार में बेचने ले गई। अरे रे ! इस संसार में पुण्य-पाप की कैसी विचित्रता है कि एक सती नारी वेश्या के हाथों बिक रही है ! (किन्तु पाठको ! तुम घबराना नहीं....क्योंकि ऐसे पुण्य-पाप के उदय में भी आत्मा को उनसे भिन्न रख सके ऐसी ज्ञानचेतना, प्रभुवीर के प्रताप से चन्दना के पास विद्यमान है। चन्दना की उस चेतना को जानने का तुम प्रयत्न करना।)
जहाँ की महारानी मृगावती स्वयं चन्दनबाला की बहिन है, उस कौशाम्बी के वेश्या बाजार में महावीर की मौसी एक दासी के रूप में बिक रही है !
वेश्या आतुरतापूर्वक प्रतीक्षा कर रही है कि कोई बड़ा ग्राहक आये तो उसे