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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-३/२६ ब्रह्मगुलाल यह रहस्यभरी बात सुनकर विचार में पड़ गये....वे इस बात का रहस्य खुलवाना चाहते थे.... ।अतः उन्होंने कहा -
"कुमार ! क्या अभी तक तुम्हारी मित्र-मण्डली हमारी परीक्षा नहीं कर पायी ? हमारी कला का प्रदर्शन तो यहाँ बहुत समय से हो रहा है। फिर आज यह नया विचार कैसा ?"
राजकुमार ने कहा -
“कलाविद् ! आज तुम्हें अपनी कला की परीक्षा देनी ही होगी, क्योंकि तुम्हारी प्रत्येक कला का प्रदर्शन महत्त्वपूर्ण और आकर्षक होता है। अतः आज तुम्हें पहले से अधिक अच्छा स्वाँग करना पड़ेगा।"
ब्रह्मगुलाल ने कहा – “आखिर यह तो बताओ....कि मेरी यह परीक्षा किस रूप में करवाना चाहते हो।"
राजकुमार ने बात स्पष्ट की कि “तुम सिंह का पराक्रम जानते हो, आज तुम्हें सिंह का स्वाँग बताना ही होगा।"
ब्रह्मगुलाल ने कहा-“यह सब कुछ हो सकता है, परन्तु....तुम्हें भी कुछ करना होगा।"
राजकुमार ने कहा – “मैं सब करूँगा, बताओ। ऐसा कौन-सा कठिन कार्य है - जो मेरे लिए असंभव हो ?'
ब्रह्मगुलाल ने गंभीरता से कहा -
“आपको महाराज के पास से एक प्राणी के वध की मंजूरी लाना होगी, उसके बाद आप अपनी रंगशाला में सिंह का पराक्रम देख सकेंगे।
“ठीक है, मैं तुम्हारी व्यवस्था करूँगा - " यह कहकर राजकुमार ने स्वीकृति दे दी। (रे भवितव्य !)