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કર્તા : શ્રી પૂજ્ય અમૃતવિજયજી મહારાજ છે પ્રભુ ! તેરી મૂરતિ મોહનગારી-પ્રભુ, पभप्रमानितेशही आगे, और हेवन जी हारी-प्रभु०...(१) સમતા શીતલભરી, દોય અખિયાં, કમલપંખરીયાં વારી माननत शाहसोराटे, जानी सुधारस सारी-प्रभु०...(२) લચ્છન અંગ ભર્યો તન તેરો, સહસ અઠોત્તર ધારી भीतर गुनही पार न पाये, 80656त जियारी-प्रभु०...(3) શશિ રવિ ગિરિ હરી, કો ગુન લઈ, નિરમિત ગાત્ર સમારી जजत मुESiहांसों मआयो, ये अय२४ मु४ भारी-प्रमु०...(४) યો ગુણ અનંત ભરી છબી પ્યારી, પરમ ધરમ હિતકારી.
वि अमृत हे वित्त अवतारी, विसरत नाही निसारी-प्रभु०...(५) कर्ता : श्री पूज्य अमृतविजयजी महाराज (°° प्रभु ! तेरी मूरति मोहनगारी-प्रभु० पद्मप्रभजिन तेरीही आगे, और देवन छबी हारी-प्रभु०...(१) समता शीतलभरी, दोय अखियां, कमलपंखरीयां वारी आनन ते राका चंदसो राजे, बानी सुधारस सारी-प्रभु० ...(२) लच्छन अंग भर्यो तन तेरो, सहस अठोत्तर धारी भीतर गुनको पार न पावे, जो कोउ कहत बिचारी-प्रभु०...(३) शशि रवि गिरि हरी, को गुन लेई, निरमित गात्र समारी बखत बुलंद कांहांसों आयो, ये अचरज मुज भारी-प्रभु०...(४) यो गुण अनंत भरी छबी प्यारी, परम धरम हितकारी कवि अमृत कहे चित्त अवतारी, बिसरत नाही बिसारी-प्रभु०...(५)
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