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कर्ताः श्री पूज्य कनकविजयजी महाराज26.. जिनरायाजी कुंथु-जिणंद दयाल, महिर करोजी मुज उपरईं,
-जिनरायाजी जिनरायाजी। तुं प्रभु! परम-कृपाल! तुं सेवक-जन सुख करई - जिन०जिन० (१) तुम्ह चरणे मुझ वास, दास अधुं हुं ताहरो-जिन०जिन० पलक न छोड़े पास', जिम जाणो तिम उद्धार-जिन०जिन० (२) चउराशी-लखयोनि, चउ-गतिमां भमतां लह्यो- जिन०जिन० निरु पम तुम्ह दीदार, मुझ मनमां थिर थई रह्यो-जिनजिन०(३) अवसरईं लही संयोग, जे मूरख अ-फलो गमे-जिनजिन० फिरी पछिता तेह, नरक-निगोदमां हे भमे-जिन०जिन०(४) अ-विहड जिम करे-रेख, तिम लागो नेह ते नवि टले-जिन०जिनक पणि प्रभु जो हुई तुम्ह नेह, तो कनकविजय वंछित फले-जिन जिन०(५)
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