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कर्ता : श्री पूज्य यशोविजयजी महाराज 2 ऐसें सामी सुपार्श्व से दिल लगा ।। दुःख भगा ! सुख जगा ! जग-तारणा।। राजहंसकुं मानसरोवर, रेवा-जल ज्युं वारणा । खीर-सिंधु ज्युं हरिकुं प्यारो, ज्ञानीकु तत्त्व-विचारणा-ऐसे० ।।१।। मोरकुं मेह चकोरकुं चंदा, मधु, मनमथ चित्त-ठारना । फूल अमूल भ्रमरकुं अंबही, कोकिलकुं सुख-कारना-ऐसे० ।।२।। सीताकुं राम काम ज्यु रतिकुं, पंथीकुं घर-बारना ।। दानीकुं त्याग याग बंभनकुं, योगीकु संयम धारना-ऐसे0 ।। ३ ।। नंदन वन ज्युं सुरकुं वल्लभ, न्यायीकुं न्याय निहारना त्युं मेरे मन तुंही सुहायो, ओर तो चित्तथें उतारना-ऐसे0 ।।४।। श्री सुपार्श्व दरिशन पर तेरे, कीजें कोडि उवारना। श्रीनयविजय विबुध सेवककुं, कियो समतारस पारना-ऐसे0।। ।।
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