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अपराधे श्ये प्रतिबंधे ॥२॥ प्रीतीकरी जे किम तोड़ी जे, जेणे जस लीजे ते प्रभु कीजे । जाण सुजाणज ते जाणी जे, वातज कीजे ते निवहीजे ॥३॥ उत्तम ही जो आदरी छड़े, मेरू महिधर तो किम मंडे । जो तुम सरीखा सयणज चुके तो किम जलधर धारा मुके ॥४॥ निगुणा भुलो तेतो त्यागे, गुण विण निवही प्रीति न जाये । पण सुगुणा जो मुली जाये, तो जगमां कुण हे कहेवाये ॥५॥ एक पखी पण प्रीति निवाहे, धन धन ते अवतार आराहे । इम कहीं नेमशु मली एक तारे, राजुल नारी नइ गिरनारे ॥६॥ पुरण मनमाँ भाव भरेई, संजमी होई शिवसुख लेइ । नेमशु मलीयां रंगे रलीयां, केशर जंपे वंछित फलियां ॥७॥
१९ सुपार्श्वनाथजी का स्तवन
(राग–अजित जिणंद शुप्रीतड़ी ए देशी) श्री सुपार्श्व जिन साहिबा, सुणो विनती हो प्रभु परम कृपाल के । समकीत सुखड़ी आपी ए दुःख कापीये हो, जिन दीनदयाल के ॥ श्री सु०॥१॥ मौनधरी बेठा तुमे निचिंता हो प्रभु थइने नाथ के । हुँ तो आतुर अति उता. वलो, मागु छु हो जोड़ी दोय हाथ के श्री सु०॥२॥ सुगुणा साहिब तुम बिना कुण करसे हो सेवक नीसार के ।