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[५०] . - ११ कुंथुनाथजी का स्तक्न
(राग-साँभल जो मुनि संजम रागे ए देशी)
आवो रे मन महेल हमारे, जिम सुख बोल कहाय रे । सेवक ने अवसर सर पुछो, तो वाते रात विहाय रे ॥प्रा०॥ ॥१॥ अपराधी गुणहीणा चाकर, ठाकुर नेह निवाजेरे । जोते भवर, नरा दिशी दोरे. प्रभु इण बात लाजे रेश्रा०॥ ॥२॥ कुथु जिणेसर सरखा सांइ, पर उपगारी पुरारे । चित्त वंता चाकर नवि तारे, तोश्या अवर अधुरारे ॥प्रा०॥३॥ मुज अनुचरनी माम वधारो, तो प्रभु व्हेला पधारोरे । ऊंची नीची मत अवधारो, सेवक जन्म सुधारो रे ॥०॥४॥ श्री नामे जननी धन्य जिननी, जिणे जन्म्यो तुज्ञातारे । मेघ तणी परे मोटा नायक, दीजे शिव सुख शातारे ॥प्रा०॥५॥
___ १२ ऋषभदेव का स्तवन (लाड़ी लो लाखेणी लाड़ी वखाणो आयो ए देशी)
सईयां ऋषभ जिणंद सुमन लाग्यु, चोल तणी परे रंग लागे रे। मोरू मन रातु ए, प्रभु रागे जेहबु हीर कीरमजी रागे है । रात दिवस जे प्रभु मुख भागे, मीन ज्यु रमे नीर अथागे हे ॥स०॥१॥ मेहे मोरा चंद चकोरा, जिम कोयल वली सहकारा हो । तिम प्रगटे बहु नेहा मेरा, ऐह