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रोहिणि तप जगमां प्रति म्होटो, खोटो नहीं लगार जी । अनुभव ज्ञान सहित आदरतां, लहिए भव भय पार जी ॥ १ ॥ स वीसमें दिन वे रोहिणी, तिरा दिन करो उपवास जी । द्रव्य भाव जिन पुजो चोवीश, केसर कुसुम बरास जी ॥ धूप अगर गौघृत दीप पूरी, वृक्ष अशोक रसाल जी । ते तले वासुपूज्य प्रतिमा थापी, पूजो भावे त्रिकाले जी ॥२॥ सात वरस सात मास ए तपनो, मान कहे जिनराय जी । पडिकमणु देववंदन किरियां, निर्मल मन वच काय जी ॥ भूमि शयन ब्रह्मव्रत तप पूरे, उजमणु निज शक्ते जी । दर्शन नाग चरण आराधी, साधो श्रुत नियुक्ते जी || ३ || रुमकुम करती संकट हरती, धारती समकित वाली जी । चंडाई देवी जिनपद सेवी, शाशननी रखवाली जी ॥ रोहिणी तप आराधे भवियां, भाव थकी मन साचे जी । तेल कान्ती अधिक जस जगमां, जो जिन भक्ते राचे जी ॥४॥
१४ अष्टमी की स्तुति का जोडा
(राग - वीर जिनेश्वर अति अलवेसर)
वीर जिनेश्वर कहे भवि भावे, अष्टमी व्रत आदरिये जी । ठमे अनर्थदंड निवारी, आठे मद परिहरिये जी ॥
पोरनो होर पोसो, आठमने दिन करिये जी । माठ प्रवचन माता पाली, अष्ट महासिद्धी वरीये जी ॥१॥