________________
[७] ८ श्री पुंडरीक स्वामी का चैत्यवन्दन
आदिश्वर जिनरायनो, गणधर गुणवन्त । प्रगटनाम पुंडरीक जास, महीमाए मंहत ॥१॥ पंच कोडी मुनिशु, अनसन तिहां कीध। .. शुक्लध्यान ध्याता अमूल, केवल तिहां लीध ॥२॥ चैत्री पूनमने दिन, पाम्या पद महानंद । ते दिनथी पुंडरीकगिरी, नाम दान सुखकंद॥३॥
९ श्री सीमंधर स्वामी का चैत्यवन्दन सीमंधर जिन विचरता, सोहे विजय मोझार । समवसरण रचे देवता, बेसे पर्षदा बार ॥१॥ नवतत्त्वनी दीये देशना, सांभली सुरनर कोड । षट द्रव्यादिक वर्णव, ले समकित करजोड ॥२॥ इहां थकी जिन वेगला सहस तेत्रीश शत एक । सत्तावन जोजन वली, सत्तर कला सुविशेष ॥३॥ द्रव्य थकी जिन वेगला, भावथी हृदय मोझार । तिहुकाले वंदन करु, श्वास माहें सो वार ॥४॥ श्री सीमंधर जिनवरुए, पूरे वांछित कोड । कांतिविजय गुरु प्रणमतां, भक्ति बे करजोड ॥५॥