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मनोहरश्रीजी ना पगला इन्दोरमां थया रे, महिला मंडलना मनोरथ सवि फल्या रे | वन्दन स्वीकारजो गुरुराज ॥ शो०
०५ ॥
८ पर्व पर्यूषण की गहुँली
(राग - आवो आवो देव मारा )
रुडा रुडा राज पर्ण पर्यु युषन आव्या आज । रुडा पयूषन आज || जीव अमारीनो पडही वजावो सारे शहेर । भाई-भाई ना झगडा छोड़ी, मुकी द्यो सवि वेर || ( रूडा) मोसम मोटी वी जे, करो कमाणि सार । साधवु होय तो साधी लेजो, तो झट बेडा पार || (रूडा) भव समुद्रने तरवा का पर्ण हे नाव समान | नाव सांभली जो वेसो तो जाशो मुक्ति किनार || ( रूडा) क्रोध मान माया मूकि ने करो हृदय निर्मल | दया क्षमा ने धीरज धारी, तप तपजो उजमाल || (रूडा) हली मलिने वो बेनी सुरणवा वाणी सार । कल्प सूत्रमां बारसा साये, सुखजो धर्मनो सार || ( रूडा) पुण्य प्रभावे मलिया गुरूजी, पन्यासजी महाराज | आत्म तणो ए साचो ल्हावो लूट लो सौ आज || (रूडा) जैन धर्म ना डंका बजावो बोलो जय-जयकार | 'सूर्य शिशु' विनवे भाव धरीने, उतरजो भवपार ॥ ( रूडा) |
[ समाप्त ]