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[१४४] नणदल जन्म थयो जब एहनो, चोसठ इन्द्र मिलेय हो । नणदल मेरु शिखर न्हवराविया, भावथी भक्ति करेय हो न० ॥ थारो० ७॥ नणदल बाल्यु केहनु नवि गमे, चित्तमां कांइ न सुहाय हो । नणदल सवि शणगार अंगारड़ा, ए दुःख कोने कहवाय हो न० ॥ थारो० ८ ।। नण दल राणी यशोदा इम कहे, सुदर्शना ने बोल हो । भाभी व्हेने भाई समजाविया, पण प्रभु वीर अडोल हो न० ॥ थारो० ९॥ भवियण चोसठ इन्द्र तिहा मल्या, सुरनर कोड़ा कोड़ हो। भवियण पांच महाव्रत आचर्या, बाह्यान्तर ग्रंथो छोड़ हो । भवियण वीर जिनेश्वर जग जयो ॥ १० ॥ भवियणा बार वर्ष बहु तप तप्या, पाम्या केवल ज्ञान हो । भविया कर्म खपावा सिद्धि वर्या, पहोत्यांसास्वत स्थान हो भवियण ॥वीर जिनश्वर जग जयो ॥११॥ भवियण श्री महावीर जिणंदने, गातां उपजे उल्लास हो । भवियण हरख विजय कविरायनो, प्रीति विजय प्रभु दास हो भविया ॥वीर जिनेश्वर जग जयो ॥१२॥
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- १८ श्री सीता महासती की सज्झाय
(धोबीडा तुधोजे मननु धोतीयु रे-ए देशी )
जनक सुता सीता सती रे, रामचन्द्रनी घर नारी रे । कैकायी वर अनुभाव थी रे, पहोता वनह मोझार रे ॥१॥