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कलश
गणीस एके वरस छेक पूर्णिमा श्रावण वरो । मैं थुण्यो लायक विश्वनायक वर्द्धमान जिनेश्वरो || संवेग रंग तरंग झीले जस विजय समता वरो । शुभ विजय पंडित चरण सेवक वीर विजय जयकरो || १ ||
९ श्री सिद्धचक्रजी का स्तवन के ढालिया (राग - जीहो कुर बेठा गोखडे - ए देशी ) ढाल पहली
जिहो प्रणमु' दिन प्रत्ये जिनपति-लाला, शिव सुखकारी अशेष, जिहो सोई चैत्री तणो-लाला । अट्ठाई विशेष, भविकजन-जिनवर जग जयवार । जिहो जिहां नवपद आधार, भविकजन-ए कडी ॥ १ ॥ जिहो तेह दिवस याराधवा-लाला, नंदिश्वर सुर जाय । जिहो जिवाभिगम मांहे का जाला, करे अडदिन महिमाय ॥ भ० || २ || जिहो नवपद केरा यंत्रनी- जाला, पूजा कीजे रे जाप । जिहो रोग शोक सवि आपदा- लाला, ॥ भ० ॥ ३ ॥ जिहो अरिहंत सिद्ध उवज्झाय साधु ए पंच । जिहो दंसण नाण चारित्र तवोलाला, ए चउगुणनो प्रपंच ॥ भ० ॥ ४ ॥ जिहो ए
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नासे
पापनो व्याप
श्राचारज - लाला,
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