________________
[ १०५] लघु सुत आठमो लोकपाल, रोहिणीनो ते सुर सेवतारे॥॥ वली खेट सुता छे चार, रमवाने वनमा गइरे । तीहां दीठा एक अणगार, भाखे धर्म वेला थइरे ॥ पूछयाथी कहे मुनि भास, आठ पहोर तुम आयुछेरे। आज पंचमीनो उपवास, करशो तो फलदायीछेरे ॥रो. ६॥ धुजंती करी पचक्खाण, गेह अगासे जइ सोवतीरे । पडी बिजलीये वली तेह, धुर सुरलोके देवी थतीरे ॥ चवी थइ तुम पुत्री चार, एक दिन पंचमी तो करीरे । इम सांभली सहुं परिवार, वात पूर्वभानी सांभलीरे ॥रो. ७॥ गुरु वंदी गया निज गेह, रोहिणी तप करता सहुरे। मोटी शक्ति बहुमान, उजमणां वस्तु बहुरे ॥ इम धर्म करी परिवार, साथे मोक्षपुरी वरीरे । शुभवीरना शाशन मांहि, सुख फल पामो तप श्रादरीरे ॥८॥
कलश इम त्रिजग नायक मुक्ति दायक, वीर जिनवर भाखीयो । तप रोहिणीनो फल विधाने, विधि विशेषे दाखीयो । श्री क्षमाविजय जसविजय पाटे, शुभविजय सुमति धरो । तस चरण सेवक कहे पंडित, वीरविजयो जय करो ॥