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७ रोहिणी तप विधि का स्तवन के ढालीया दोहा
सुखकर संखेश्वर नमो, शुभ गुरूनो आधार । रोहिणी तप महिमा विधि कहिशु भवि उपगार ॥१॥ भक्त पान कुत्सित दिए, मुनिने जाण अजाण । नरक तिर्यंचमां जीव ते, पामे बहु दुःख खाग || २ || ते पण रोहिणी तप थकी, पामी सुख संसार । मो गया तेहनो कहुं, सुन्दर ए अधिकार ||३|| ढाल पहली
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मघवा नगरी करी कंपा, अरिवर्ग थकी नहीं कंपा । या भरते पुरी छे चंपा, राम सीता सरोवर पंपा || पनोता प्रेमथी तप कीजे, गुरू पासे तप उचरिये ॥ १ ॥ वासुपूज्यना पुत्र कहाय, मघवा नामे तिहां राय । तस लक्ष्मीवती छे राणी, आठ पुत्र उपर एक जाणी ॥ प० ॥ २ ॥ रोहिणी नामे थई बेटी, नृप वल्लभस थई मोटी । यौवन वयमां जब आवे, तब वरनी चिंता थावे ॥ प० ॥३॥ स्वयंवर मंडप मंडावे, दूरथी राजपुत्र मिलावे । रोहिणी शणगार धरावी, जाणु चन्द्र प्रिया इहां श्रावी ॥४॥ नागपुर वीतशोक भूपाल, तस पुत्र अशोक कुमार । वरमाला कंठे ठावे, नृप रोहिणी ने परणावे || १० ||५||