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निमंत्रण किया । संवत् १९८१ पोष शु. ४ को मांडवगढ़ की ओर प्रस्थान किया। संघ में लगभग चार सौ श्रावक श्राविका थे, २५ बैलगाड़ी, प्रभुजी की प्रतिमा, बैंड बाजा, पुलिस विगेरा और भोजन आदि का पूरा प्रबन्ध था । आनन्दपूर्वक संघ तीर्थ स्थान में पहोंचा । १००८ श्री सुपार्श्वनाथजी, शांतिनाथजी प्रभु के दर्शन पूजन, अंगरचना भक्ति भाव करता हुआ संघ तीन दिन ठहरा । आप श्री ने पोष शु. १० मी को परम पूज्य पन्यासजी म. और वि संघ के समक्ष में तीर्थ माल पहनी फिर आनन्दपूर्वक श्री संघ को इन्दौर में लाकर श्रीफल की प्रभावना देकर श्री संघ को विदा किया ।
चतु
श्री भगवती दीक्षा
ऐसा वैराग्यमय जीवन बिताते हुए भाई-बहिन की आज्ञा लेकर श्री आगमोद्धारक आचार्य देवेश के शिष्यरत्न परम पूज्य पन्यासजी विजयसागरजी म. और पूज्य उपाध्याय क्षमासागरजी म. सा. का चौमासा इसी इन्द्रपुरी में ही था । कोई साध्वीजी का परिचय नहीं होने से उनके कहे अनुसार अहमदाबाद पांजरापोल उपाश्रय में परम पू. बाल ब्रह्मचारी शिवश्रीजी म. सा. के शिष्य रत्न परम पू. तिलकश्रीजी म. सा. वहां विराजमान थे । उनको विनंती कि आप मालव देश में पधारो और प्राचीन तीर्थ कि यात्रा