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मुनिसुव्रत, नमि नमि नेमि सदा दुखते वारे, ताके नमूं पाये लाग ॥ ३॥ पहि० ॥ परतिख जेहनो दीसे परचो, पुरसा दाणी समीं पास ॥ वर्धमान चउवीसम जिनवर, जगि जागे जेहनो जस पास ॥४॥ पहि० ॥ परम पुरुषनां नाम जपतां, कीधा करम खपे लख कोडि ॥ भाव सहित उठि परभाते जिन रंगसूरि नमें कर जोडि ॥ ५ ॥ पहि० ॥ इति ।
॥ अथ गौडी पार्श्व जिन स्तवन ॥ अरज करूँ. कर जोडिने जी, प्राणी मन उल्लास, निज सेवक जाणि करी जी, पूरज्यो मुझ मन पास ॥१॥ जिनेश्वर सांभलगौड़ीजी पास ॥ टेक ॥ दूर थकी मन माहरोजी, देखन तुम चरणेय मनडो छे तुम्ह पास ॥२॥ जिने० ॥ ध्यान धरे मन माहरोजी, पिण मेलो किण विध हुवे जी जां लग छे अन्तराय ॥३॥ जि० ॥ थे निस्नेही होय रह्मा जी नाणो मोह लगार ॥ हूँ सस्नेही तुम भणी जी समरूँ बारम्बार ॥४॥ जि० ॥ चम्पक लोहतणी परेंजी एक पक्षीया प्रीत ॥ पायस मन प्रांणे नहीं जी, चातक चाहे चित्त ॥ ५ ॥ जि०॥ स्वप्न मैं देखू सदा जी, परतिख देखू तेम ॥ हरषित मन मेरो हुवै जी, बूढें जलधर जेम ॥ ६॥ जि० ॥ परतिख परचो ताह रोजी, सहु जाणे संसार ॥ मन शुद्ध पूजें तिकेजी, धन्य तिणरो अवतार ॥ ७॥ जि० ॥ जन मुख गुण तुम सांभलीजी, खरीय मिलनरी हौंस ॥ मुझ मन पिण हुलसे घणोंजी झूठ कहूँ तो