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तारिये । सर्वार्थ से प्रभु आप यहां श्रवतस्या, सब जग मण्डल हर्षथा श्रानन्द भख्या ॥ १ ॥ विश्वसेन जसु तात मात श्रचिरा तरों जन्म्यां श्री महाराज वंश इनु गि, दीक्षा केवल नाण कल्याणक शुभ लहि सोलम जिनवर देव पंचम चक्री सही ॥ २ ॥ लंछन चरण कुरंग रहे तसु सेवमें सोवन वर्ण शरीर धनुष चालीस में, गजपुर मांहे वेद कल्याणक जानिये | शिखर सम्मेत पे जाय सिद्ध पद मानिये ॥ ३ ॥ नन्दा नयन नव इन्दु संवत् विक्रम तणों या कवि दिने नाम प्रतापहि चन्द्र थयो इह जगत में । पारसान तसु गोत्र रहें इन्द्रप्रस्थ में ॥ ४ ॥ थाप्या बिम्ब उदार शांति जिन देवता श्रतम निर्मल काज करो नित सेवना । करुणा सिन्धु कृपाल कृपा अब कीजिये भव दुख मेटो अमर पद दीजिए ॥ ५ ॥ बृहत भट्टारक गच्छ खरतर में सोहतो श्री जयशेखरसूरि सकल जन मोहतो, श्री जिन सूरि कल्याण कहें कर जोडी ने दीजे अविचल वास करम फंद तोड़ने ॥ ६ ॥ इति
|| नवपद स्तवन ॥
राग मारू ।
तीरथ नायक जिन वरूरे अतिशय जास अनूप | सिद्ध अनन्त महागुणीरे परमानन्द स्वरूप ॥ भविक मन धार ज्योरे धरज्यों नव पद ध्यान ॥ भवि० ॥ टेक ॥ १ ॥ श्री श्राचारज गण धरूरे गुण छत्तीस निवास । पाठक पद धर