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( २० ) रस पूरण अशुभ हरण भय दूर। संघ उदय कर सदगुरू मेरा विनबै श्री जिन चन्दसरि ॥ कुशल ॥२॥
॥ अथ सज्झाय ॥ - चाल-कौन गुरु कौन चेला। साधो भाई अब हम कीनी ज्ञान सराफी जग में परगट कहाए । भव अनेक गांव सब तज के उत्तम कुल में पाए ॥१॥ समकित हाट करी अति नीकी समता टाट विछाये । क्षमा गादी ऊपर चढ़ बैठे तकिया शील लगाए ॥ साधो २॥ तप मुनीम दीसे अति उत्तम संयम पारख राखे। धीरज विप्र तगादे भेज्यो सत्य दलालज भाषे ॥ साधो ३ ॥ शुद्ध भाव की या बटवारी कांटा सुघड़ सुधारा । दृढ़ वैराग्य का कीया तोला पाप तोल कीया न्यारा ॥ साधो ४॥ श्री जिन भजन किया रोजनामचा करुणा बही बणाए । जिन श्राक्षा की रोकड राखी धर्म ध्यान बदलाये ॥ साधो ५ ॥ मान मार के स्याही लाया तप की कलम बनाई । दर्शन शान चारित्र लिख श्री जिन चरण चढाये ॥साधो ॥ गुरु उपदेश का किया अडेवादीसे जमा सवाई । जिन रंग ऐसा विणज करत हैं मुक्त महानिधि पाई ॥ ७॥ इति ।
॥ धर्म स्वरूप सज्झाय ॥ धर्म करोरे प्रापियां धर्म कियां सुख होसीरे। धर्म विहुणाजी बडा आगे दुर्गति लेसीरे ॥ धर्म० ॥ १ ॥ माहरो