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॥ शांति जिन स्तवन ॥ राग भैरवी ।
में
शांति जिणेसर सांचो साहिब शांति करण इण निर्मल ज्योति वदन प्रभु शोभित निकला चन्द बदल भव भव भमतां दरसंग पायो इतु उगी मरुस्थल मेरो मन प्रभु तुमसों लाग्यो ज्यों जलचर मीन जल में ॥ जिन रंग के प्रभु शांति सवाई देखा देव सकल में ॥ ४ ॥
में ॥
३ ॥
कलिमें ।
॥
१ ॥
२ ॥
राग वसन्त ।
ऋषभ जिनेश्वर भेटियं हो प्राणी मन श्राद । दीठां दिलड़ो उल्लसे हो दिन दिन दीये श्राद ॥ १ ॥ श्रदीश्वर मेरे मन बस्यो हो श्रांकणी । नाभि नरेसर नंद ॥ चन्द किरण जिसो निरमलो हो दीपे सुन्दर देह । नर भव सफलो जेहनों हो निज कर पूजे जेह ॥ २ ॥ श्रादी० ॥ चोल तणी परे माहरो हो लागे प्रभु सुचित्त । चन्द चकोर तणी परे हो दिन दिन वधती प्रीत || श्रादी० || ३ || मेरु शिखर जिसो देहरो हो सारा है संसार । मन वंछित श्राशा फले हो विक्रम पुर श्रृङ्गार || ४ || श्री जिन राज पसाउले हो लहिये अविचल राज | रंग सुरि चढ़ती कला हो दरसण दीठा हो श्राज ॥ श्रदी ॥ ५ । इति ।
राग बसन्त |
हां हां रे यमुना तट धूम मचाई है री माई नेम सांवरो खेले होरी ॥ यमु० ॥ टेक ॥ दस दसाई ठाडे हैं घेरे नीकी