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वासुपूज्य जिन वंदीये, भाव धरी भगवंत रे
जिनपति जसधारी, दीठो देव दयाल ते, नयणां हेजे हसतं रे; जिन ॥ १।। हरिहर जेणे वश कयाँ, इंद्रादिक असदास रे; जिन ते मन्मथनो मद हों, तें प्रभु कीधो उदास रे; जिन ॥२॥ मयण मयण परे गालीयो, ध्यान अनल बल देख रे, जिनक कामिनी कोमल वयणशं, चुक्यो नहि राइ रेख रे; जिन० ॥३॥ नाण दरिसण चरण तणो, जे भंडार जयवंत रे; जिन आप तरी पर ताखा, तु अविचल बलवंत रे; जिन० ॥४॥ मन मेरो तुम पाखली, रसीयो फरे दिन रात रे; जिन० सरस मेघने वरसवे रे, नाचे मोर विख्यात रे जिन ॥५॥
वासुपूज्य विलासी, चंपाना वासी, पूरो अमारी आश; करु पूजा हुं खासी, केशर घासी, पुष्प सुवासी, पूरो अमारी आश; चैत्यवंदन करु चित्तथी प्रभुजी, गाउँ गीत रसाल; ओम पूजा करी विनंती करू छु, आपो मोक्ष विलास दीयो कर्मने फांसी, कठो कुवासी, जेम जाय नासी,
पूरो अमारी आश आ संसार धीर महोदधिथी; काढो अमने बहार स्वारथना सहु कोइ सगा छे, माता पिता परिवार बाल मित्र उलासी, विजय विलासी, अरजी खासी, पूरो
अमारी आश
है, माता
जी खासी, परी आश