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श्री साधारण जीन चैत्यवंदन तुज मुरतिने निरखवा, मुज नयणां तरसे तुज गुण गण ने बोलवा, रसना मुज हरसे ॥१॥ काया अति आनन्द मुज, तुम युग पद करसे तो सेवक तार्यो विना, कहो किम हवे सरसे ॥२॥ एम जाणी ने साहिबाए, नेक नजर मोहे जोय; ज्ञान विमल प्रभु सुनजरथी, तेशुं जे नवि होय ॥३॥
श्री सिद्धाचलजी का चैत्यवंदन श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, सिद्धाचल साचो, आदीश्वर जिनरायनो, जिहां महिमा जाचो ॥१॥ ईहां अनंत गुणवंत साधु, पाम्या, शिववास; एह गिरि सेवाथी आधिक, होय लील विलास ॥ २॥ दुष्कृत सवि दूरे हरे ए, बहु भव संचित जेह; सकल तीरथ शिर सेहरो, दान नमे घरी नेह ॥ ३ ॥