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सेवना झाझी करे, काउस्सग करता देखी कमठे, कीष परीषह आकरो॥ नित्य० ॥ ५॥ तव ध्यानधारारूढ जिनपति, मेहाधारे नवि चल्यो, तिहां चलित आसन धरण आयो, कमठ परीषह अट कलयो; देवाधिदेवनी करे सेवा, कमठ ने काढी परो। नित्य० ॥ ६ ॥ क्रमे पामी केवलज्ञान कमला, संघ चउविह स्थापीने, प्रभु गया मोक्षे सम्मेतशिखरे, मास अणसण पालीने, शिव रमणी रंगे रमे रसियो, भविक तस सेवा करो ॥ नित्य० ॥ ६॥ भूतप्रेत पिशाच व्यंतर, जलण जलोदर भय टले, राज राणी रमा पामे, भकित मावे जो मले; कल्पतरुपी अधिक दाता, जगत त्राता जय करो ॥ नित्य० ॥ ८ ॥ जरा जर्जरी भुत यादव सैन्य रोग निवारता वढीयार देशे नित्य बिराजे भविक जीवने तारता, ए प्रभु तणां पद पद्म सेवा, रूप कहे प्रभुता वरो॥ नित्य० ॥६॥
(२४) श्री महावीर स्वामी जिन चैत्यबंदन सिद्धारथ सुतवंदीये, त्रिशलानो जायो; क्षत्रिय-कुँडमां अवतर्यो, सुर नर पति गायो॥१॥ मृगपति लंछन पाउले सात हाथनी काया, बोतेरवरसनु आवखु, वीर जिनेश्वर राय ॥२॥ क्षमा विजय जिनराजना ए, उत्तम गुण अवदात, सात बोलथी वर्णव्या, पद्मविजय विख्यात
बीज का चैत्यवंदन दुविध बंधन ने टालीए जे वली रागने ध्वेष आर्त रौद्र दोय अशुभ ध्यान, नविकरो लवलेश ॥१॥