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( ३० ) (५) श्री सुमतिनाथ जिन चैत्यवंदन .. सुमति जयन्त विमानथी, रहया अयोध्या ठाम, राक्षस गण 'पंचम प्रभु, सिंहराशि गुणधाम ॥१॥ मधा नक्षत्रे जनमिया मूषक योनि जगदीश मोहराय संग्राममां, वरस गया छन्वीश ॥२॥ जोत्यो प्रियंगु तरु तलेए, सहस मुनि परिवार अविनाशी पदवी वर्या, वीर नमे सो वार ॥३॥
(६) श्री पद्मप्रभु जिन चैत्यवंदन कोसंबी पुरी राजीयो, घर नरपति ताय; पद्मप्रभु प्रभुता मई सुसीमा जस माय ॥१॥ त्रीश लाख पूरब तणु जिन आयु पाली धनुष अढीसें देहडी, सवि कर्मने टाली॥२॥ पद्म लंछन परमेसरुंए जिनपदपद्मनी सेवः पद्मविजय कहे कीजीए भविजन सहु नित्यमेव ॥३॥
(७) श्री सुपार्श्वनाथ जिन चैत्य वंदन श्री सुपास जिणंद पास, टाव्यो भव फेरो, पृथ्वी माता उरे जयो, ते नाथ हमेरो ॥१॥ प्रतिष्ठित सुत सुंदरु, (नयरी) वणारसी राया वीश लाख पूरव तणुं प्रभुजी- आय ॥२॥ धनुष बसें जिन देहड़ी ए, स्वस्तिक लंछन सार, पद पद्म जस राजतो, तार तार भवतार ॥ ३ ॥
(८) श्री चन्द्रप्रभ जिन चैत्यवंदन लक्ष्मणा माता जनमीयो, महसेन जस ताय, उडुयति लंछन दोपतो, चंद्रपुरीनो राय ॥ १॥ दश लाख पूरव आवखं, दोढसो