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हृदय कमल उपशम वले, वाल्या रागने द्वेष । हेम दहे बन खण्ड ने, हृदय तिलक सन्तोष ॥ ६ ॥
हृदय का रत्नत्रय गुण ऊजली, सकल सुगुण विश्राम । नाभि कमलनी पूजना, करतां अविचल धाम ||५||
पूजन IM
नाभि का पूजन
नव तत्वना, तिम नव अंग जिणंद ।
उपदेशक पूजो बहुविधि भावथि, कहे सहु वीर मुणिंद ॥१०॥