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वस्त्र पूजा ( वस्त्र लेकर खड़ा रहे और यह श्लोक पढ़े) शक्रोयथा जिनपतेः सुरशैल चूला, सिंहासनो परिमित स्त्पना वसाने । दध्यक्षतैः कुसुम चन्दन गन्ध धूपः,
कृत्वार्चनं तु विदधाति सुवस्त्र पूजां ॥१॥ तत् श्रावक वर्ग एष विधियालंकार वस्त्रादिकं, पूजा तीर्थ कृतां करौति सततं शक्त्यादि भक्ता दृत,। नीरागम्य निरञ्जनस्य विजिताराते स्त्रीलोकीपतेः, स्वस्थान्यस्य जनस्य निर्वृत्ति कृते क्लेश क्षयाकाडक्षया॥२॥
ॐ हीं परमात्मने अनन्तानंत ज्ञान शक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय, श्री मजिनेन्द्राय वस्त्रेण यजामहे स्वाहा । वस्त्र चढ़ावें । ____ पूजन सर्व अंगों मे पहिले दाहिने तरफ, फिर बाई तरफ करें-नव अंगों की पूजा होती है उनका एक एक श्लोक पढ़े और अंग भेटें