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प्रस्तावना भक्ति मुक्ति की दूती कैसे
परमात्म भक्ति ही मुक्ति की दूती है। अनादि अनंत काल से जीव कर्म तथा मोहवश अपनी मुक्तावस्था को देख नहीं सका । जो जीव कर्मशृङ्खला से बद्ध है वह मुक्तावस्था का अनुभव कैसे कर सकता ? मुक्ति खुद की ही सुन्दर अवस्था है, सुन्दरी है । लेकिन जीव के समक्ष वह मान कर बैठी है और जीव के सामने देखती तक नहीं। अरे ! वह तो अपनी दूती तक को भेजती नहीं । यदि उनकी दूती भी जीव के पास आजाय तब भी जीव को आश्वासन मिले कि अब थोड़ा मार्ग खुला है। मेरी मुक्ति सुन्दरी ने दूती भेजकर मेरे सम्मुख वह कुछ अनुकूल बनी है। यदि मैं इस दूती को विकसित कर दूं तथा पूर्ण विश्वास दिला दूं, तव इस दूती से संदेश पाकर तथा प्रसन्न होकर मुक्ति सुन्दरी मेरा आलिंगन करेगी। अथवा मुझे अपनी ओर आकर्षित करेगी।
यही बात बड़ी राजकुमारियों के बारे में चरितार्थ होती थी। वे राजकुमारी बहुत विश्वास पात्र दूती रखती जो कि किसी राजकुमार को परीक्षा कर उनकी ओर से संदेशा लाती, तभी वह राजकुमारी राजकुमार को वरण करती। राजकुमार भी उस दूती को प्रसन्न करने के लिये अपनी योग्यता तथा कला का प्रदर्शन करता। ठीक इसी प्रकार मुक्ति राजकुमारी के लिये एकमात्र विश्वास पात्र दूती परमात्म भक्ति है। यदि मैंने