________________
[ १२१ ]
श्री मति श्राविका सतीने दीघु अति दुःख सासरिये घड़ामां सर्प मुकीन, कहेवू फुल माला लावोने
गणी नवकार लावे फुल माल......मारो अमरने होमला काजे, मंगाव्यो बाल श्रेणीके लाव्या भग्निकुंड पासे गयो नवकार ने शरणे
थयो चमत्कार नमे तत्काल......मारो प्रभु मे काष्ट चीरावी उगार्या नाग नागणने श्राविका द्वारा मंत्र सुणावी, कर्यों उद्धार युगलनो
बन्यो धरणेन्द्र पद्मावती...मारो
१६)
ऐसी दशा हो भगवान जब प्राण तन से निकले गिरिराज की हो छायो मन में न होवे माया तप से हो शुद्ध काया जब प्राण तन से निकले मन में न मान होवे, दिल एक तान होवे प्रभु चरणे ध्यान होवे जब प्राण तन से निकले संसार दुख हरना, जिन धर्म का हो शरणा सब कर्म मर्म हरणा जब प्राण तन से निकले अनशन का सिद्धवट ही प्रभु आदिदेव घट हो गुरूराज भी निकट हो जब प्राण तन से निकले यह बिनती सुन लीजे इतनी दया तो कीजे अरजी तिलक की लीजे जब प्राण तन से निकले