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[ ११० ] पाया, फिर संसारे नहि आया । फिर० ॥ में० ॥ में दूर देश से आया प्रभु चरणे शीश नमाया, में अरज करी सुखदाया, तुमे अवधारो महाराया, एम वीरविजय गुण गाया ॥ एम० ॥ में० ॥.७ ॥
बीजका स्तवन प्रणमी शारद माय, शासन वीर सुहंकरुजी; वीज तिथि गुण गेह, आदशे अवियण सुंदरुजी ॥१॥ एह दिन पंच कल्याण, विवरीने कहुं ते सुणोजी; महा सुदी बीजे जाण, जन्म अभिनन्दन तणोजी॥२॥ श्रावण सुदीनी हो बोज, सुमति चव्या सुरलोकथीजी; तारण भवोदधि तेह, तस पद सेवे सुरलोकथीजी ॥३॥ समेतशिखर शुभ ठाण, द्रशमा शीतल जिन गणुजी; चैत्र वदीनी हो बीज, वर्या मुकित तस सुख धगँजी ॥४॥ फालगुन मासनी बीज, उत्तम उन्नवल मासनीजी; अरनाथ च्यवन, कर्मक्षये भवयाशनीजी ॥५॥ उत्तम माघज मास, शुदी बीजे वासुपुज्यनोजी; एहीज दिन केवलनाण, शरण करो जिन राजनोजी ॥६॥ करणी रुप करो खेत; समकित रूप रोपो सिहानी; खातर किरिया हो जाण खेड समता करी जीहांजी ॥॥ म्यान तद्र प नीर, समकित छोड प्रगट होवेजी; संतोष करी अहो वाड, पच्चखाण व्रत चोकी सोहेजी ॥८॥ नासे कर्म रिपु चोर, समकित वृक्ष फल्यो तिहाजी; मांजर अनुभव रूप, उतरे चारित्र फल जीहांजी ॥६॥शांति सुधारस वारि, पान करी सुख लीजीएजी; तंबोल सम ल्यो स्वाद, जीवने संतोष रस कीजीएजी ॥१०॥ बीज करो दोय मास, उत्कृष्टी बावीश मासनीजी; चोविहार उपवास, पालीये शील वसुधासनीजी ॥११॥ आवश्यक दोय वार, पडिलेहण दोय लीजी