________________
१८]
मृत्यु और परलोक यात्रा
(क) ब्रह्म शरीर
आत्मिक शरीर जीवात्मा का ही स्वरूप है। इसको भी खोने से ब्रह्म शरीर की प्राप्ति होती है। इसमें पाना नहीं खोना ही उपलब्धि है । इस शरीर के प्राप्त होने पर ब्रह्म अवस्था की उपलब्धि होती है। इसको प्राप्त व्यक्ति ब्रह्मलोक में निवास करता है। इसमें पहुंचकर व्यक्ति "अहं ब्रह्मास्मि" की घोषणा कर सकता है।
इस शरीर का सम्बन्ध कुण्डलिनी के "आज्ञा चक्र" से है । यहाँ आकर अस्मिता भी खो जाती है । जो अस्मिता को खोना नहीं चाहता वह ब्रह्म से पृथक रह कर यहाँ के भोगों को भोगता है। इसका पुनर्जन्म नहीं होता किन्तु यह उसकी इच्छा पर निर्भर है।
कर्मों के अनुसार नहीं बल्कि करुणावश वह जन्म ले सकता है। ऐसे व्यक्तियों को अवतार कहा जाता है। यहां व्यक्ति ब्रह्म हो जाता है। इस छठवें की समाधि को "ब्रह्म समाधि" कहते हैं। इसमें आकार समष्टिगत हो जाता है। यही "आनन्दमय कोश है । जहाँ चेतना शुद्ध स्वरूप में रहती है।
000