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मृत्यु और परलोक यात्रा
मन से समस्त स्नायुमंडल झंकृत हो जाता है जिससे पागलपन जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, व्यक्ति भयभीत हो जाता है व उसकी मृत्यु भी हो सकती है। इस अतिरिक्त शक्ति को सहन करने के लिए विभिन्न साधनाओं द्वारा स्नायुतंत्र को सशक्त किया जाता है तब किसी जीवात्मा का प्रवेश कराया जाता है।
पात्र तैयार होने पर वह जीवात्मा स्वयं ही आने की इच्छुक रहती है । प्रेतों का आह्वान करने वाले श्मशान जगाते हैं, मंत्र सिद्ध करते हैं तथा अपनी रक्षा का पूर्ण प्रबन्ध करते हैं वरना यह एक खतरनाक खेल है । आदिवासियों में कई दुष्ट आत्माएँ प्रेत, वीर, सकोतरे आदि को पालने की भी विधियाँ हैं जिनसे वे इच्छित कार्य करवाते हैं ।
जब किसी अन्य आत्मा का शरीर में प्रवेश होता है तो * स्वयं की जीवात्मा सिकुड़ जाती है तथा बाहरी आत्मा का उस शरीर पर कब्जा हो जाता है।
ऐसी स्थिति में उसकी आवाज बदल जाती है, उसके हाव'भाव बदल जाते हैं, उसकी भाषा और शैली भी बदल जाती है। वह अपने को अन्य व्यक्ति बताने लगता है। बार-बार ऐसी आत्माओं को बुलाने पर उसका शरीर अभ्यस्त हो जाता है जिससे बेचैनी का अनुभव नहीं होता। प्रेतात्मा के आगमन " पर वह भयभीत होकर मूर्छित भी हो जाता है तथा उसके निकलने पर वह शिथिल होकर काफी समय पड़ा रहता है।
(स) मन्त्रों द्वारा आवाह्न मनुष्य ध्यान या प्रार्थना द्वारा अथवा विशेष प्रकार के