________________
.७२ ]
मृत्यु और परलोक यात्रा
1
अन्य सहायक उन्हें आगे जाने में सहायता करते हैं किन्तु इन प्रेतों के यह समझ में नहीं आता । ये प्रेत दूसरे मनुष्यों के शरीर अपने वश में करके नये कर्म करते रहते हैं जिनका फल उन्हें भविष्य में अवश्य भोगना पड़ता है । यह अकाल मृत्यु बुरी समझी जाती है । जब यह जीव पुनः जन्म लेता है तो ये ही वृत्तियाँ बीज रूप में विद्यमान रहती हैं। इस प्रकृति के ata के नाश होने पर ही उसकी आगे के लोक में गति होती है ।
हिन्दुओं में जीवात्मा की इस प्रेतयोनि से मुक्ति के लिए अनेक कर्म किए जाते हैं जिनमें वार्षिक श्राद्ध, गया श्राद्ध आदि हैं तथा अन्तिम श्राद्ध बद्रीनाथ में किया जाता है ।
इसके बाद यह माना जाता है कि वह जीवात्मा प्रेतयोनि से मुक्त होकर अगले लोक में चली गई है अथवा उसका पुनर्जन्म हो चुका है । ऐसा देखा भी गया है कि जिसके ये श्राद्ध कर दिए जाते हैं वह जीवात्मा फिर किसी घर वाले को नहीं सताती न किसी के शरीर में आती है। ये प्रेतयोनि थोड़ी बहुत सभी को भोगनी पड़ती है । केवल जीवन्मुक्त ही इससे वंचित रहते हैं ।
जीवात्मा का अपना स्वतन्त्र अस्तित्व है । शरीर की मृत्यु पर भी जीवात्मा जीवित रहती है । जो लोग मृत्यु के मुख से वापिस लौटे हैं उन्होंने जो वर्णन किया है डाक्टरों ने उसका निष्कर्ष निम्न प्रकार निकाला है
" मृत्यु के बाद मृतक स्वयं अपने को अपने भौतिक शरीर से अलग हवा में उठा हुआ पाता है । वह अपने सगे सम्बन्धियों को उसका शोक मनाते, रोते- कलपते स्पष्ट देखता है। वह