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मृत्यु और परलोक यात्रा पीपल में देवताओं का निवास माना जाता है इसलिए उस जीवात्मा को उनके पास ले जाकर छोड़ आते हैं जिससे वह प्रेतयोनि में न पड़े। उस दिन गरुड़ पुराण की भी समाप्ति कर दी जाती है तथा वहाँ से लौटकर घर में ढोल बज जाता है जो शभ का प्रतीक है। इसी दिन उत्तराधिकार की रस्म अदा की जाती है। बारह दिन तक जीवात्मा का घर में निवास मानकर अन्य उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया जाता।
(द) जीवात्मा का सूक्ष्मलोक में प्रवेश ___ जैसे ही जीवात्मा अपना स्थूल शरीर छोड़ती है उसका नये लोक में प्रवेश होता है । यह लोक इस स्थूल लोक से सूक्ष्म है तथा जीवात्मा भी अपने सक्ष्म शरीर से ही इसमें प्रवेश करती है। इस लोक का उसे पूर्व अनुभव नहीं है न इसकी प्रकृति से परिचित ही है । इस लोक का विस्तार इस स्थूल लोक से भी अधिक है । वहाँ जीवात्मा का केवल भौतिक शरीर ही नहीं होता, न कोई भौतिक साधन सुविधाएँ ही होती हैं बाकी सब कुछ होता है। ___ यहाँ उसके सगे-सम्बन्धी, मित्र आदि सभी मिल जाते हैं यदि उनका पुनर्जन्म नहीं हुआ है अथवा आगे के लोकों में उनकी गति नहीं हुई है । इस लोक में प्रवेश करने के बाद इस संसार की स्मृति उसे थोड़े समय रहती है, फिर वह भूल जाता है, जिस प्रकार स्वप्न टूटने पर थोड़े समय ही उसकी स्मृति रहती है । मृत्यु स्वप्न टूटने के समान ही है तथा इसके बाद यह संसार स्वप्नवत् ही ज्ञात होने लगता है। नये लोक में