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मृत्यु का अनुभव
. [५५. उसे मृत्यु का भय नहीं होता । उसे मृत्यु एक सुखद अनुभव प्रतीत होती है। ___ जिसने जीवन को निरर्थक कार्यों में ही गँवा दिया है, जिसने अगले जीवन की तैयारी नहीं की वही मृत्यु से भयभीत होता है क्योंकि उसे पता ही नहीं है कि मृत्यु के बाद क्या होगा तथा अगला जीवन उसे कैसा मिलेगा? ज्ञान होने पर उसका यह भय दूर हो जाता है।
जीवात्मा उस परम अस्तित्व का अंग है जिसका रूप सदा बदलता रहता है । जब उसे प्रकट होना होता है तो वह शरीर धारण करता है। शरीर नष्ट होने पर वह पुनः अप्रकट हो जाता है, स्वयं नष्ट नहीं होता। मृत्यु का अर्थ मिट जाना नहीं है। निर्माण, मोक्ष में भी मिटता नहीं, उस परम अस्तित्व के साथ एक हो जाता है, उसका हिस्सा बन जाता है । जन्म के बाद वह उस अस्तित्व से भिन्न दिखाई देता है जो उसी का घनीभूत रूप है किन्तु वास्तव में वह उससे सदा ही अभिन्न बना रहता है। ___ जीने की वासना ही मृत्यु के भय का कारण है। जो जितना वासनाग्रस्त होता है वह उतना ही भयभीत होता है। मृत्यु घाटे का सौदा नहीं है। मृत्यु के बाद ही जीवात्मा का नया जीवन नई चेतना से आरम्भ होता है। इस जन्म के सम्पूर्ण अनुभव, संस्कार रूप में जीवात्मा में विद्यमान रहते हैं जिससे अगला जीवन इससे अधिक उन्नत व सुखी रहता है। मुक्ति से पूर्व बार-बार जन्म-मृत्यु के चक्र से गुजरना परमात्मा का अभिशाप नहीं बल्कि वरदान है जिससे चेतना निरन्तर विकास को प्राप्त होती है तथा वही विकसित चेतना अन्त में मोक्ष को प्राप्त होती है।