________________
५. सूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर से भिन्न (अ) सूक्ष्म शरीर को स्थूल शरीर से अलग
करना चूंकि सूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर से भिन्न है इसलिए कोई भी व्यक्ति अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति से, योगिक क्रियाओं तथा अन्य थोड़ी-सी साधना से सूक्ष्म शरीर को स्थूल शरीर से अलग भी कर सकता है । कभी-कभी निद्रा, अचेतन अवस्था या रुग्ण अवस्था में भी यह भौतिक शरीर से अलग होकर कहीं भी विचरण कर सकता है । इस पर दिग्काल के बन्धन लागू नहीं होते । सूक्ष्म शरीर के अलग होने पर यह स्थूल शरीर से "रजत रज्जु" से बंधा रहता है। ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं।
सूक्ष्म शरीर को अपने शरीर से बाहर निकाल कर पुनः अपने शरीर में प्रवेश कराना कठिन है । इसके लिए पूर्व तैयारी की आवश्यकता है किन्तु ऐसा करने से आत्मा व शरीर के बीच का जो तालमेल है वह टूट जाता है एवं आत्मा रूपी ऊर्जा की अनुपस्थिति में शरीर के कई कोष मृत हो जाते हैं जिससे स्थूल शरीर में विकृति आ जाती है तथा उसकी आयु भी कम हो जाती है । ऐसा करना अप्राकृतिक एवं अस्वाभाविक है।
(४७)