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प्राप्त होती है । इसकी अभिव्यक्ति स्वप्न में होती है ।
चिदात्मा पुरुष के सभी व्यापारों का कारण यह सूक्ष्म शरीर ही है । स्थूल शरीर इसी सूक्ष्म शरीर ( लिंग - शरीर ) के अधीन है अतः स्थूल शरीर के द्वारा किए गए समस्त कर्मों का दायित्व इसी पर है | मनुष्य मनःप्रधान लिंग शरीर की सहायता से कर्म करता है । मृत्यु के बाद भी यह मन के साथ ही रहता है । शरीर द्वारा किए गए समस्त पाप-पुण्य को यह अपने ऊपर ले लेता है इसी कारण इसी को पुनः जन्म लेना पड़ता है । मृत्यु के बाद जीवन में किए गए सभी अनुभव संस्कार रूप से इसी में संग्रहीत रहते हैं । यह सूक्ष्म शरीर ही जीवात्मा का स्व- शरीर है ।
मृत्यु
और परलोक यात्रा
जब तक जीव दूसरा शरीर प्राप्त नहीं कर लेता तब तक वह पहले के शरीर के अभिमान को नहीं छोड़ता । जीव के जन्मादि का यही कारण है । इसी से हर्ष, शोक, भय, सुख, दुःख आदि का अनुभव होता है । इसी के द्वारा मनुष्य भिन्नभिन्न देहों को ग्रहण करता और त्यागता है ।
मृत्यु के समय यह जीवात्मा स्थूल शरीर को त्याग कर सूक्ष्म शरीर में प्रवेश करता है तथा नये जन्म पर यह सूक्ष्म शरीर ही फिर स्थूल शरीर में प्रवेश करता है जो मृत्यु पर्यन्त बना रहता है । बार-बार जन्म लेकर यह जीवात्मा जीवन में प्राप्त अनुभवों के आधार पर उच्चता का अनुभव करती हुई निरन्तर विकास को प्राप्त होती है ।
जीवात्मा का विकास भौतिक शरीर के बिना नहीं हो सकता इसलिए बार-बार जन्म लेना आवश्यक है । मृत्यु के बाद इन अनुभवों का पाचन होता है तथा नये अनुभव प्राप्त