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मृत्यु ओर परलोक यात्रा जायगा। जीवात्मा को तो अपनी वासना पूर्ति के लिए केवल माध्यम की आवश्यकता है, वह किसी भी प्रकार से तैयार हो। केवल मुक्तात्माएँ ही निर्वासना मय होने से इसमें प्रवेश नहीं करेगी।
यह जीवात्मा ऐसे माध्यम को चुनती है जो उसकी प्रकृति के अनुकूल हो और उसकी वासनापूर्ति का माध्यम बन सके। यह जीवात्मा स्वेच्छा से नहीं बल्कि संस्कारों से वांछित होकर प्रवेश करता है। इस प्रकार जीवात्मा की यह यात्रा शरीर से परलोक एवं परलोक से शरीर के बीच में निरन्तर चलती रहती है जब तक उसे मुक्तावस्था की प्राप्ति न हो जाय।
(द) जीवात्मा और कर्म
जीवात्मा का कर्तापन उसका स्वाभाविक धर्म नहीं है। उसका कर्तापन अन्तःकरण आदि के सम्बन्ध से है, अन्यथा यह भी अकर्ता एवं निष्क्रिय है। वास्तव में समस्त कर्म प्रकृति के गुणों द्वारा किये हुए हैं किन्तु अहंकार वश वह अपने को कर्ता मान लेता है इसलिए वह कर्म फलों का भोक्ता भी हो जाता
है।
___ जीवात्मा का कर्तापन परमेश्वर के सहयोग एवं शक्ति से है इसलिए उसका कर्तापन ईश्वराधीन है। जीवात्मा को नवीन कर्म करने की शक्ति एवं सामग्री पूर्वकृत कर्म संस्कारों की अपेक्षा से ही प्राप्त होती है। इस शक्ति एवं सामग्री का सदुपयोग विवेक द्वारा करके वह सदाचरण में प्रवृत्त हो सकता है। इसमें वह स्वतन्त्र है । दुरुपयोग करने पर ईश्वर दोषो नहीं है।