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___ मृत्यु और परलोक यात्रा समझ से, बोध से, ज्ञान से तथा अनुभूति से भी परे है । ज्ञानियों ने भी इसकी पूर्ण जानकारी नहीं दी है, दे भा नहीं सकते क्योंकि यहाँ किसी की पहुँच ही नहीं है, देना उचित भी नहीं है। इससे भ्रांति अधिक पैदा होती है। इसके सत्य स्वरूप की थोड़ी व्याख्या उसी ने की है जिसे इसकी अनुभूति हुई है किन्तु वह शब्दों से परे हैं। यहाँ किसी ज्ञानी की पहुँच नहीं हैं। ज्ञान के अन्तिम छोर पर खड़े होकर इसका अनुभव किया जा सकता है। यही अनुभव जगत् को दिया जा सकता है। इस असोम में प्रवेश का कोई उपाय नहीं है तथा प्रवेश करने के बाद लौटने का उपाय नहीं है। ___ ये ब्रह्मा, विष्णु, महेश, देव, गन्धर्व आदि इसके प्रवेश द्वार के बाहर हो खड़े रहकर इस जगत की रचना, संचालन एवं व्यवस्था कर रहे हैं। अतः इस परम चेतन तत्त्व की अनुभूति ही होती है, इसमें प्रवेश नहीं हो सकता । कल्पान्त में ही सभी इसमें प्रविष्ठ होते हैं फिर सृष्टि रचना की नई प्रक्रिया नये 'सिरे से आरम्भ होती है। ज्ञानियों ने इसे “परब्रह्म' कहा। वही परब्रह्म सबको धारण करने वाला है, समस्त जड़ एवं चेतन प्रकृतियों का स्वामी, संचालन एवं शासक है किन्तु वह इन प्रकृतियों से भिन्न भी है। इस प्रकार वह इन सबसे श्रेष्ठ एवं विलक्षण है । यह सृष्टि की कारण अवस्था है जिसे उसका 'निराकार स्वरूप कहते हैं। जब यह कार्य रूप में स्थित होता है तो इसकी विभिन्न शक्तियां भिन्न-भिन्न नाम-रूपों में प्रकट होती हैं। ___ यही इसका साकार रूप है जो इसकी कार्य अवस्था है। इस प्रकार निर्गुण ब्रह्म (परब्रह्म) कारण ब्रह्म है, तथा सगुण ब्रह्म (अपर ब्रह्म) कार्य ब्रह्म है। ये ब्रह्म के भिन्न-भिन्न दो