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साधारण जीवों की परलोक यात्रा
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को अपने अनेक जन्मों की याद आ जाती है तथा आगे के जन्मों का भी पता लग जाता है । यहाँ बड़े-बड़े महात्माओं से सम्पर्क होता है । जिनके मनस शरीर का पूर्ण विकास हो जाता है वे ही इसमें पहुंचते हैं।
यहाँ जीव को सभी प्रकार का सुख मिलता है इसलिए इसे " स्वर्गलोक " कहते हैं । यहाँ सभी कामनाएँ इच्छा मात्र से पूरी हो जाती हैं । उत्तम गुणों वाले ही इसमें प्रवेश करते हैं । यहाँ सभी संशय मिट जाते हैं । यहाँ तक के सभी लोक मनःस्तर तक के ही हैं ।
इसकी सबसे नीची भूमिका में हल्की मनोवृत्ति के लोग रहते हैं । दूसरी भूमिका में इष्टदेव के दर्शन भी होते हैं । यहाँ सभी धर्मों के लोग रहते हैं। तीसरी भूमिका में उदार चित्त और उत्साही जीव मिलते हैं। चौथी भूमिका में कला एवं साहित्य के बड़े-बड़े आचार्य अपने-अपने कार्यों में लगे रहते हैं । पृथ्वी के बड़े-बड़े संगीतज्ञ यहाँ उत्तम गान करते रहते हैं । यहाँ उत्तम कोटि के चित्रकार व मूर्तिकार भी मिलते हैं । ये यहाँ अपना विकास भी करते हैं ।
प्रकृति की शक्तियों का अन्वेषण करने वाले वैज्ञानिक भी यहाँ मिलते हैं । यहाँ विनीत एवं तत्त्व - जिज्ञासु भी आते हैं जिन्हें यहां गुरु का सान्निध्य प्राप्त होता है । इसमें जीव लम्बे समय तक रहते हैं । इस चौथी भूमिका तक जीवात्मा का मनोमय कोश रहता है । यहाँ के भोग समाप्त होने पर जीव इस मनोमय कोश का त्याग कर कारण शरीर में प्रवेश करता है जो इसकी पाँचवीं भूमिका है । यह अरूप खण्ड हैं । इसमें प्रवेश करने पर जीव को सृष्टि रचना का ज्ञान हो जाता है ।