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साधारण जीवों की परलोक यात्रा
[ १०६ लेते हैं तभी दिखाई देते हैं। स्थूल जगत के प्राणी भी विशेष साधना द्वारा जब अपने परमाणुओं को सूक्ष्म बना लेते हैं तो वे भी सूक्ष्म लोकों को देख सकते हैं। सामान्य रूप से ये नहीं, दिखाई देते।
यह अज्ञान तथा अविद्या का लोक है । ज्यों-ज्यों जीवात्मा • की इस लोक से ऊपर के लोकों में पहुंच होती जाती है त्यों-. त्यों ज्ञान का प्रकाश होता जाता है जिसकी अन्तिम परिणति मोक्ष में होती है। भूलोक में ही मनुष्य जन्म लेता और मरता । है। मृत्यु इसी लोक की घटना है इसीलिए इसे "मर्त्य लोक" भी कहते हैं। यह चेतना की जाग्रत अवस्था है। इसी में विकास की सम्भावनाएँ हैं। सुख-दुःखों का अनुभव भी इसी लोक में होता है।
इस लोक में कामना एवं वासना का अज्ञान रहता है। जीव इसी में सुख मानता है, यही अज्ञान है। इस लोक में माया का विस्तार अधिक है। ज्ञान की इच्छा वाले इसमें विषयानन्द की इच्छा नहीं करते। इस स्थल लोक से मोक्ष पर्यन्त जीवात्मा को स्थूल से सूक्ष्म की ओर सात लोक पार करने पड़ते हैं। स्थूल लोक का सम्बन्ध शरीर के “अन्नमय कोश" से है क्योंकि स्थूल शरीर का पोषण अन्न से ही होता है। जीवात्मा को बाह्य जगत का ज्ञान स्थूल शरीर से इस स्थूल लोक में ही होता है। मृत्यु के बाद यह जीवात्मा अपने स्थूल का त्याग करता है। इसके त्याग से स्थूल लोक का भी त्याग हो जाता है । मृत्यु पर जीवात्मा केवल स्थूल शरीर का ही त्याग करती है, अन्य सभी सूक्ष्म तत्त्वों को साथ लेकर जाता है जो बीज स्वरूप है। इसी से वह पुनः नया स्थूल शरीर धारण करता है।