________________
११. साधारण जीवों की परलोक यात्रा
(अ) विभिन्न लोक
जिस प्रकार यह चेतन तत्त्व सात आवरणों से युक्त होकर स्थूल शरीर धारण करता है उसी प्रकार प्रकृति के तत्त्व घनी-भूत होकर विभिन्न लोकों का निर्माण करते हैं । पदार्थ की सूक्ष्मता के आधार पर ही सात लोक हैं । सभी पदार्थ प्रकृतितथा पुरुष परमाणुओं के समूह से बने हैं । जहाँ सब पदार्थ एक ही प्रकार के पुरुष प्रकृति परमाणुओं के समूहों से बने होते हैं उसे "लोक" कहते हैं ।
इन सभी प्रकार के परमाणुओं का आत्मा “ईश्वर” है जो सबके केन्द्र रूप में स्थित है । उस ईश्वर पर प्रकृति का संयोग होने से उस पर प्रकृति के परमाणुओं के आवरण चढ़ते जाते हैं जिससे उसकी घनता बढ़ती जाती है। ऊँचे के लोकों में कम तथा नीचे के लोकों में अधिक आवरण रहने के कारण उनकी घनता अधिक होती जाती है । जीवात्मा भी इसी प्रकार प्रकृति के आवरणों के कारण कम घनता से अधिक घनदा को प्राप्त होकर स्थूल शरीर का रूप धारण करती है ।
( १०७ )