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१०. ब्रह्मविदों की परलोक यात्रा (अ) ब्रह्म ज्ञान
परब्रह्म सर्वव्यापी है किन्तु उसकी अनुभूति चित्त में ही होती है इसलिए उसे हृदय में स्थित बताया गया है । जीवात्मा में भी ईश्वर के समान गुण होते हुए भी वे अहंकार, कामना, वासना आदि के कारण तिरोहित हैं जो चिन्तन से ही प्रकट होते हैं। परब्रह्म के ज्ञान के अभाव में ही यह जीवात्मा अज्ञान के कारण शरीर, मन, इन्द्रियों आदि को ही महत्त्व देती है।
यही उसके बन्धन का कारण है तथा उसके ज्ञान से ये सभी बन्धन टूटकर उसे सत्य स्वरूप का ज्ञान हो जाता है। इसी ज्ञान से मुक्ति होती है। मोक्ष ब्रह्मज्ञान से ही होता है अन्य किसी कर्म से नहीं। — ईश्वर के गुणों के प्रकट न होने के कारण जीवात्मा का शरीर के साथ एकता मान लेना है यही सबसे बड़ी बाधा है जिसे पार किये बिना उसका ज्ञान सम्भव नहीं है। परमात्मा साकार भी है इसीलिए उपासना का महत्त्व है। उपासना से ही वह प्रत्यक्ष होता है। उसका प्रत्यक्ष दर्शन भी सम्भव है किन्तु बिना अभ्यास के यह सम्भव नहीं है । परब्रह्म का जगत्
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