________________
मृत्युः लोकदर्शी के लिए, महा भयका राक्षस ! परंतु, प्रात्मदर्शीके लिए, महाउपकारक मित्र ! क्योंकि यही मोक्षमार्गमें प्रवृत्त करता है, इसके द्वारा ही सुकृतों का फल मिलता है यही जर्जर शरीरको छुड़ाकर अभिनव तन परित्राण दिलाता है तब सत्पुरुषार्थ में अग्रसर करता है। इस भांति मृत्यु बहिदृष्टाके लिए गमी, मातम !
पर आत्मदृष्टा के लिए महोत्सव !
। यह भी खूब मृत्युमहोत्सव ! पर सचमुच वर्तमान समय में इसे मानने वाले भी तो हुए
__ आत्मदर्शी तपस्वी सन्त चरित्रचक्रवती आचार्यप्रवर १०८ शांतिसागरजीमाहराज
धन्य हैं वे तो उन्हों यथायोग्य प्राध्यात्मयोगी आचार्यपुङ्गवके
चरणकमलों में यह सादर समर्पित ! -वीरेन्द्र