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किसी भी 'वार' के दिन मृत्यु आ सकती है। वह सोमवार को भी
आ सकती है और मंगलवार को भी । किसी भी तारीख व किसी भी तिथि के दिन वह आ सकती है। वह खाते-खाते भी आ सकती है और सोते-सोते भी। वह दिन में भी आ सकती है और रात्रि में भी। उसके आगमन में कोई दिन, कोई वार, कोई तिथि, कोई समय, कोई घड़ी और कोई पर्व प्रतिबन्धक नहीं है।
• याद आ जाती है महाभारत की एक घटना। युधिष्ठिर प्रतिदिन मध्याह्न समय तक दान करता था। एक बार एक याचक मध्याह्न समय के बाद आया और युधिष्ठिर से कुछ याचना करने लगा। युधिष्ठिर ने कहा "आज समय हो चुका है, अतः कल पाना।"
युधिष्ठिर के इस जवाब को सुनकर भीम ने 'विजय-भंभा' बजवाई। युधिष्ठिर ने भंभा की आवाज सुनी। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। भीम के पास आकर युधिष्ठिर ने पूछा, 'अरे भोम ! आज हमने किसके ऊपर विजय प्राप्त की है ? अभी विजय की भंभा कैसे बजाई जा रही है ?'
भीम ने कहा-'भैया ! आपने 'काल' पर विजय प्राप्त कर ली है, इस खुशी में मैंने 'विजय-भंभा' बजवाई है।
भीम के इस जवाब को सुनकर आश्चर्यभरी दृष्टि से युधिष्ठिर ने कहा-'अरे भीम! तुझे किसने कहा कि मैंने काल पर विजय प्राप्त कर ली है ? काल पर विजय पाने वाला आज तक कोई पैदा हसा है ?'
भीम ने कहा-'आपने याचक को जो जवाब दिया है, उसी
मृत्यु की मंगल यात्रा-80