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इच्छाएं आकाश के समान अनन्त हैं। एक इच्छा पूर्ण होते ही दूसरी नयी इच्छा जन्म ले लेती है और उन इच्छाओं की तृप्ति के लिए मनुष्य सतत प्रयत्नशील बना रहता है परन्तु जीवन के तो अमूल्य क्षण बीते जा रहे हैं, उस ओर उसकी लेश भी नजर नहीं होती है।
इस संसार में चिन्तामणि रत्न की प्राप्ति से भी मनुष्यजन्म की प्राप्ति अत्यन्त दुर्लभ है ।
यह बात तुमने प्रवचनों में अनेक बार सुनी ही होगी कि देवता अपने करोड़ों वर्ष के आयुष्य में भी जो पुण्यबंध या कर्मनिर्जरा नहीं कर सकते हैं. वह पुण्यबंध और निर्जरा, मनुष्य अपने अल्पकालीन जीवन में आसानी से कर सकता है ।
विरति-धर्म का पालन देवताओं के लिए असम्भव है, जो मनुष्य के लिए अति सुगम है। मात्र आठ वर्ष की लघु वय में मनुष्य ही सर्व पापों से विराम पा सकता है और सम्पूर्ण अहिंसक जोवन जो सकता है, जो देवताओं के लिए बिल्कुल शक्य नहीं है।
परन्तु अफसोस ! अत्यन्त दुर्लभ मनुष्य-जीवन मिलने पर भी मानव अपने जीवन को विकथा-प्रमाद आदि में व्यर्थ गँवा देता है ।
एक कौए को उड़ाने के लिए कोई व्यक्ति चिन्तामणि रत्न फेंक दे तो उसे हम क्या कहेंगे ?
एक ईंट की प्राप्ति के लिए कोई महल को गिरा दे तो उसे हम क्या कहेंगे ?
मृत्यु की मंगल यात्रा-76