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________________ तुम्हें पता ही होगा कि नरक के जीवों को ये पीड़ाएँ कितने काल तक सहन करनी पड़तो हैं ? 'लघुदंडक सूत्र' का अभ्यास तुमने किया ही है। तुम जानते ही हो कि नरक के जीवों का जघन्य आयुष्य दस हजार वर्ष और अधिकतम आयुष्य तैंतीस सागरोपम का है। एक सागरोपम में असंख्य वर्ष बीत जाते हैं । उन असंख्य वर्षों में नरक के जीव को क्षण भर भी सुख और शान्ति नहीं है। अरे! नरक की पीड़ा तो परोक्ष है, तिर्यंचों की पीड़ा तो साक्षात् दिखाई देती है न? क्या बुरे हाल होते हैं उन पशुओं के ! भयंकर दुष्काल में इन पशुओं को भूख-प्यास व गर्मी की भयंकर पीड़ा सहन करनी ही पड़ती है। देखो तो जरा-गली में भटकते उस कुत्ते की क्या हालत है ? दर-दर भटकता है किन्तु रोटी का टुकड़ा भी उसे खाने को नहीं मिल पा रहा है। उसकी काया रोगों से घिरी हुई है । भूख और प्यास के मारे उसकी हालत दयनीय बनी हुई है... फिर कोई उस पर दृष्टिपात भी नहीं करता है। अरे! उस बकरे की हालत तो देखो। क्रूर व निर्दय कसाई उसे कत्लखाने में घसीट कर ले जा रहा है और वह जोर-शोर से बें-बें कर रहा है। कौन सुनता है उसकी आवाज को ?.."कुछ ही क्षणों में उसकी गर्दन पर छुरी चल पड़ती है। जरा देखो उस सूअर को। ये निर्दय लोग उसे जाल में फंसाने की कोशिश कर रहे हैं और वह दूर-दूर भागने की कोशिश कर रहा है। आखिर बेचारा पकड़ा जाता है। वह जोर-जोर से चिल्लाता है... परन्तु उसकी कोई नहीं सुनता है मृत्यु की मंगल यात्रा-67
SR No.032173
Book TitleMrutyu Ki Mangal Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1988
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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