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किसी का पैर कटा है."तो किसी का सिर फटा है. कोई हृदयरोग से त्रस्त है..."तो कोई डायबीटीज से परेशान । कोई आग से अर्द्ध दग्ध (अधजला) है तो कोई कटे हुए अंगों वाला है।
तिथंच पशु-पक्षियों को भयंकर पीड़ाएँ तो साक्षात् देख सकते हैं।
भूख और प्यास से बेमौत करुण मौत से मर रहे पशुनों की कैसी भयंकर हालत होती है ! .
मांस-चर्बी-चर्म-हड्डी आदि के लोभ से जीवित पशु भी चीर दिए जाते हैं।
अहा हा...! उस समय उन दोन/मूक पशुओं की क्या हालत होती होगी?
भगवान महावीर की कल्याणकारिणी उस वाणी को याद कर।
"अनिच्छा से दुःख को सहने से अकाम-निर्जरा होती है।"
"इच्छापूर्वक दुःख को सहने से सकाम-निर्जरा होती है।"
अपने दुष्कर्म के उदय से दु:ख पा ही गया है तो उसे समतापूर्वक सहन करने का अभ्यास करना चाहिये।
इस संसार में हमें जो दुःख है, उससे अनेक गुणी पीड़ाएँ अन्य मनुष्य-तिर्यंचों को है और मनुष्य की सर्व पीड़ानों से भी अनन्तगुणी पीड़ा नरक के जीवों को है। नरक से भी अनन्तगुणी पीड़ा निगोद के जीवों को है।
मृत्यु की मंगल यात्रा-62